विख्यात योग गुरु बाबा रामदेव और उनकी कंपनी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के लिए पिछले कुछ समय से चल रहा कानूनी विवाद सुर्खियों में बना हुआ है। यह विवाद कंपनी के उत्पादों के विज्ञापनों से जुड़ा है, जिन पर भ्रामक और अतिरंजित दावे करने का आरोप है।
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मामला कैसे शुरू हुआ?
भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के प्रचारक के रूप में पहचाने जाने वाले बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद कई तरह के आयुर्वेदिक उत्पाद बनाती है। इन उत्पादों के विज्ञापनों में अक्सर यह दावा किया जाता है कि ये दवाएं गंभीर बीमारियों जैसे डायबिटीज, शुगर और यहां तक कि कोविड-19 को भी ठीक कर सकती हैं। इन विज्ञापनों को लेकर भारतीय मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने वर्ष 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
क्या है आरोप?
IMA का आरोप है कि पतंजलि के विज्ञापन भ्रामक और अतिरंजित दावे करते हैं। ये विज्ञापन दर्शकों को गुमराह करते हैं और उन्हें यह विश्वास दिलाते हैं कि आयुर्वेदिक उत्पाद एलोपैथिक दवाओं से बेहतर और अधिक प्रभावी हैं। साथ ही, यह भी आरोप लगाया गया कि विज्ञापनों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा अक्सर अश्लील और असभ्य होती है।
कब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला?
दिल्ली हाईकोर्ट में दायर याचिका के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। शीर्ष अदालत ने इस मामले में कई सुनवाईयां की हैं। पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि और बाबा रामदेव को विज्ञापनों में अतिरंजित दावे करने के लिए फटकार लगाई थी। अदालत ने दोनों पक्षों को बिना शर्त माफी मांगने का आदेश दिया था।
क्या हुआ माफीनामे पर?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण (पतंजलि के प्रबंध निदेशक) ने बिना शर्त माफी मांगी थी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने हाल ही में दोनों के माफीनामे को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि पेश किया गया माफीनामा गंभीर नहीं है और यह कोर्ट के आदेश की अवमानना है।
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क्या है सुप्रीम कोर्ट का रुख?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाया है। अदालत का कहना है कि भ्रामक विज्ञापनों से उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। साथ ही, यह भी कहा गया है कि इस तरह के विज्ञापनों से आयुर्वेद की छवि भी खराब होती है।
आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को आदेश दिया है कि वह भविष्य में ऐसे भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित न करे। इसके अलावा, अदालत ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर कंपनी ने ऐसा किया तो उस पर एक करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। फिलहाल, इस मामले की सुनवाई जारी है और यह देखना बाकी है कि कोर्ट किस तरह का अंतिम फैसला सुनाता है।
गौर करने वाली बातें
यह मामला उपभोक्ताओं के अधिकारों और भ्रामक विज्ञापनों के मुद्दे को उजागर करता है।
यह केस आयुर्वेद और एलोपैथी चिकित्सा पद्धतियों के बीच तुलना पर भी चर्चा खड़ी करता है।